शाम होते ही होने लगते हैं जमा,
कुछ युवा
सड़क के किनारे बनी
चाय व पान की दुकान पर
क्योंकि वे सड़क के दूसरे छोर पर
बने मकानों के
सुंदर मुखड़ों के दर्शनार्थ
यहाँ आते हैं,
और इस प्रकार
अपनी अतृप्त आशाओं, इच्छाओं को
अपनी आँखों के सहारे मिटाते हैं।
एक नियम की भाँति हर शाम
यहाँ जमा होने का क्रम।
अपने अधगले विचारों का प्रदर्शन,
इसके साथ ही
उड़ने लगते हैं धुँए के गुबार,
लगने लगते हैं कहकशे
बिना बात बार-बार।
उन्हें नहीं मालूम होता है
इतिहास अपने देश का,
भविष्य अपने वर्तमान का,
पर...............
वे जानते हैं, रखते हैं
सामने वालों के
एक-एक पल का हिसाब।
सुबह उठने तलक से सोने तक का हिसाब,
कालेज आने जाने से लेकर
बाजार हाट तक का समाचार।
कभी सामने देख कर बस एक ही झलक,
संवारने लगते हैं
अपने बाल,
गले में बँधे रूमाल,
और रंग-बिरंगी पोशाकों के पीछे से
जाहिर करते हैं
अपने होने की बात।
रहती है कोशिश उनकी
अपने बेढंगे हावभाव के द्वारा
सामने दिखते कुछ विपरीत ध्रुवों को
आकर्षित करने की।
अपनी इस विकृत छवि के सहारे,
उनसे मेलजोल बढ़ाने की।
पर इस क्रियाकलाप में
यह भूल जाते हैं कि
कहीं दूर सड़क के किनारे
बना है......
उनका भी घर.......
उन्हीं की तरह के कुछ रंगीन युवा
लगा रहे होंगे
उसका चक्कर।
वाह !! यथार्थ का बड़ा ही सटीक चित्रण किया है आपने...अंतिम लाइन पञ्च लाइन है....यह यदि सब दिमाग में रखेंगे,तो समाज में बड़ी शांति रहा करेगी.
ReplyDeleteबहुत ही अच्छी रचना .......
ReplyDeleteVah Sahee Chitr
ReplyDeleteवाह
ReplyDeletezindagi se judi rachna. bahut sundar.
ReplyDeleteबहुत खूब डॉक्टर साहब !
ReplyDeleteवो कहावत है न कि दूसरे के घरो पर पत्थर फेंकने वाले अक्सर ये भूल जाया करते है कि उनके भी खुद के घर शीशे के ही है !
yatharth/
ReplyDeleterachna ka ant bahut rochak va nasihat dene vala he/
bahut khoob/
बहुत ख़ूबसूरत और लाजवाब रचना लिखा है आपने! आपकी लेखनी की जितनी भी तारीफ की जाए कम है!
ReplyDeleteSatik chitran kiya hai aapne.Badhai.
ReplyDeleteवाह सर, कमाल की कविता !
ReplyDeleteधन्यवाद.
रश्मि.
bahut sundar......
ReplyDeleteachchi rachna padane ke liye shukria..............
ReplyDeleteबहूत अच्छी रचना. कृपया मेरे ब्लॉग पर पधारे.
ReplyDeletebahut sundar
ReplyDeletekumarendr ji ! kya aapne hi ''kathakram'' me ek lekh stri vimarsh par likha tha ???
ReplyDeleteऐसा अक्सर होता है जब मुझे भी ऐसे लोगों को देख कर खीझ होती है लेकिन फिर मै उन लोगों के बीच घुस जाता हूँ और उनसे सम्वाद करता हूँ । आश्चर्य मुझे कई कहानियाँ वहाँ मिल जाती है । और वे लोग भी उतने बुरे नही निकलते जितना हम सोचते हैं । उनके मनोभावों को समझने की ज़रूरत है ।
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